भूख और ज़रूरत इंसान से कुछ भी करा सकती है. पेट की आग बुझाने के लिए खाना तो दरकार है ही. इस भूख ने ही इंसान को तरह-तरह के पकवान बनाने के लिए मजबूर किया.
हरेक देश में कोई ना कोई पारंपरिक पकवान ज़रूर है जो खास मौकों पर ही तैयार किया जाता है.
इन पकवानों का वजूद कभी खुशहाली के माहौल में अमल में आया तो कभी ख़स्ताहाली ने रूखे-सूखे टुकड़ों से नया पकवान बनाना सिखा दिया.
खास तौर से जंग के मौक़ों पर जब खाने की कमी होती थी, तो लोग बचा हुआ खाना संभाल कर रखते थे और फिर उसी से नया पकवान तैयार कर लेते थे.
ऐसे खानों की अनगिनत रेसिपी मौजूद हैं और उन पर किताबें भी लिखी गई हैं.
सबसे पहले बात करते हैं द व्हैकी केक की. कहा जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमरीकियों ने ये केक पकाना सीखा था.
आम तौर पर केक मैदा, दूध, मक्खन, अंडे वग़ैरह से तैयार किया जाता है. लेकिन व्हैकी केक में सिर्फ़ वेजिटेबल ऑयल, आटा और चीनी का इस्तेमाल होता है. साथ में बेकिंग सोडा और सिरका मिलाया जाता है.
केक इतिहासकार लॉरा शैपिरो का कहना है कि इस केक के बनाने का तरीक़ा बहुत सादा है. लेकिन ये मानना थोड़ा मुश्किल है कि लोगों ने इसे युद्ध के समय बनाना सीखा था. हो सकता है घर में मौजूद सामानों से ही महिलाओं ने इसे बनाना सीख लिया हो. लेकिन इसमें जिस तरह बहुत कम चीज़ों का इस्तेमाल होता है, उससे लगता है कि राशन की कमी के चलते ही ऐसा हुआ होगा.
इसी तरह का एक और पकवान है, मॉक गूज़ जिसे दूसरे विश्वयुद्ध की राशन रेसिपी में शामिल किया गया था.
अंग्रेज़ी की लगभग हज़ार साल पुरानी कुकरी की किताबों में इसका ज़िक्र मिलता है. माना जाता है कि इसमें सेंके हुए बतख़ का इस्तेमाल होता है.
लेकिन 1747 में हाना ग्लास नाम की लेखिका ने अपनी किताब द आर्ट ऑफ़ कुकिंग में लिखा है कि इसमें सुअर के गोश्त की स्टफ़िंग की जाती है.
1897 में अख़बार 'हल डेली मेल' में इसे पकाने का तरीक़ा लिखा गया जिसमें आलू और सॉसेज का इस्तेमाल बताया गया.
इस पकवान का मक़सद गोश्त के बिना किफ़ायत से लज़ीज़ खाना तैयार करने का रहा होगा.
लेकिन अगर ऐसा था तो इसमें बतख़ का इस्तेमाल क्यों किया गया. चीन में आज भी ये पकवान तैयार होता है और इसमें बतख़ के गोश्त की जगह सोयाबीन भरा जाता है.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के कब्ज़े वाले यूनान की राजधानी एथेंस में हालात और भी ज़्यादा संगीन थे. 2011 में ग्रीस के इतिहासकार एलेनी निकोलाइडू ने एक किताब लिखी स्टारविंग रेसिपी.
इसमें उन पकवानों का ज़िक्र था जिन्हें युद्ध के दौरान यूनान के लोगों ने अपनाया था. यूनान के अख़बारों में भी इसका ज़िक्र मिलता है. ये वो वक़्त था जब लोग भूख से मर रहे थे.
कुछ रेसिपी में तो सिर्फ़ यही बताया गया था कि जो कुछ खाया जाए उसे धीरे-धीरे चबा कर खाया जाए ताकि पेट में खाना कम जाए और भूख का एहसास ख़त्म होने लगे.
खाते समय जितने टुकड़े गिरें उन्हें उठाकर रख लीजिए और भूख लगने पर पानी में भिगोकर खा लीजिए.
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