Wednesday, January 16, 2019

सरकार बताएगी बजट की हर बात, शुरू हुई ये पहल

देश का अंतरिम बजट पेश होने में अब चंद दिन बचे हैं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले  पेश होने वाला यह बजट काफी अहम माना जा रहा है. बजट में लोगों को क्‍या मिलने वाला है यह तो 1 फरवरी को अरुण जेटली लोकसभा में बताएंगे.  लेकिन उससे पहले बजट के बारे में आम लोगों की समझ बढ़ाने के लिए सरकार ने एक खास पहल की है.  इसके तहत बजट से जुड़ी हर बात आपको समझ में आएगी.  आइए जानते हैं कि क्‍या है वो खास पहल.

दरअसल, वित्‍त मंत्रालय की ओर से ‘अपने बजट को जानिये’ सोशल मीडिया पर एक खास सीरीज की पहल की गई है. इस सीरीज में बजट से जुड़े विभिन्न शब्दों के बारे में जानकारी दी गई है.  इस सीरीज में केन्द्र सरकार के बजट की अहमियत के बारे में बताया जाएगा.  इसके अलावा बजट बनाने की प्रक्रिया की भी पूरी जानकारी दी जायेगी. यह सिलसिला 31 जनवरी तक चलेगा.   बता दें कि सरकार एक फरवरी को 2019- 20 का अंतरिम बजट पेश करेगी.

मंगलवार को क्‍या बताया था

वित्त मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर मंगलवार से शुरू की गई इस सीरीज में पहली जानकारी आम बजट और वोट ऑन अकाउंट यानि लेखानुदान की जानकारी दी गई थी.  मंत्रालय ने आम बजट के बारे में बताया है कि बजट केंद्र सरकार के फाइनेंशियल ट्रांजेक्‍शन की जानकारी देने वाली सबसे विस्तृत रिपोर्ट है. इसमें सरकार को सभी सोर्सेज से प्राप्त होने वाले रेवेन्‍यू और विभिन्न गतिविधियों के लिए आवंटित खर्चे की जानकारी होती है. बजट में सरकार के अगले फाइनेंशियल ईयर के इनकम और खर्चे के अनुमान भी दिये जाते हैं जिन्हें बजट अनुमान कहा जाता है.

वहीं इस सीरीज में लेखानुदान के बारे में जानकारी देते हुये कहा गया है कि यह संसद की ओर से अगले फाइनेंशियल ईयर के एक हिस्से में किए जाने वाले खर्च की एडवांस अनुमति देता है. इसके अलावा वित्‍त मंत्रालय के ट्वीटर पर बुधवार को रेवेन्‍यू और आउटकम बजट के बारे में जानकारी दी गई.   बता दें कि अगले कुछ महीने में आम चुनाव होने वाले हैं इसलिये इस बार अंतरिम बजट ही पेश किया जायेगा. चुनाव होने के बाद नई सरकार ही अंतिम बजट पेश करेगी.

मायावती का कहना था कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि बीजेपी उन्हें घर न सके. हालांकि अखिलेश यादव और मायावती ने लिखे हुए भाषण पढ़े. इससे इतना तय है कि दोनों ने एक-दूसरे के भाषण भी देखे होंगे. लेकिन अखिलेश ने मायावती को रिसीव किया, उन्हें पहले बोलने का मौका दिया. राजनीतिक समीक्षकों के मुताबिक इससे ऐसा लग रहा था कि मायावती गठबंधन में बड़ी भूमिका में हैं. मायावती खुद भी इस गठबंधन की नेता के तौर पर अपने को आगे रख रही हैं.

अगर, दूसरे प्रदेशों में बसपा और मायावती की स्वीकृति की बात की जाए तो कई अन्य नेताओं की अपेक्षा माया का पलड़ा भारी दिखाई देता है. कर्नाटक में उन्होंने जेडीएस के साथ गठबंधन किया था और एक सीट जीतने में कामयाब हुई थीं. लेकिन निकाय चुनाव में बीएसपी ने 13 सीटें जीतकर यह अहसास करा दिया कि कर्नाटक में भी बसपा का वोट बैंक है.

इसी तरह, मध्य प्रदेश में भी बसपा में 2 विधायक सीट निकालने में सफल रहे. मायावती ने बिना किसी शर्त के कांग्रेस सरकार को समर्थन देने की घोषणा कर बड़प्पन का परिचय दे दिया. इसी तरह राजस्थान की बात करें तो विधानसभा चुनाव में बसपा ने अधिकतर सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और पार्टी 6 सीटें जीतने में सफल रही. यहां भी बसपा ने बिना किसी शर्त के अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार को समर्थन दे दिया.

हालांकि बाद में मायावती ने कहा था कि अगर भारत बंद में शामिल लोगों पर दर्ज मुकदमे वापस नहीं लिए गए तो वह समर्थन देने के बारे में पुनर्विचार कर सकती हैं,  लेकिन अशोक गहलोत सरकार ने इसके बाद मुकदमे वापस लेने की कार्रवाई शुरू कर दी. इस तरह देखा जाए तो गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस गठबंधन बनाने की ओर अग्रसर कोई नेता मायावती के बराबर की पकड़ दूसरे राज्यों में नहीं रखता. चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी का अस्तित्व केवल आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ही है.

No comments:

Post a Comment